किस की मानु, कुछ न जानू, विचलित होता है मन,
एक पहेली बनता जाए, जितना सोचे ये मन।
कोई कहे सब मिथ्या है ये, छोड़ दे तू ये जीवन,
कोई कहे की राह पकड़ ले भौतिकता की, कर दे मूल्य तू अर्पण।
में क्या सोचु, में क्या चाहू, कोई ना पूछे मुझसे,
उत्तर की एक आशा में, आज में पुछु तुझसे।
आगे जाऊ, पीछे सोचु, ऐसी है ये उलझन,
पल पल बढती दुविधा में बीत रहा है जीवन।
अंत है न इस दुविधा का, जाने हर बच्चा बड़ा,
वक्त के एक नाजुक मोड़ पर, ऐसा है ये प्रश्न खड़ा।
ज्ञानी बोले, व्यर्थ भटक मत अपने पथ से, बढ़ता जा तू आगे,
सब कुछ है तेरे कदमो, क्यों पीछे को तू भागे।
अपने कर्मो में रमता जा तू, नित नए इतिहास बना,
अपनों के आशीष को लेकर, एक नई दुनिया बसा।
Fantastic Poem Sid,
ReplyDeleteEvery step in Life's journey comes with choices to make. and those choices help us find solutions from the 'duvidha' :-)
ati uttam :)
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