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Tuesday, March 10, 2009

ये शहर, वो शहर

ऐसे ही चला जा रहा था अपने अपने बचपन के शहर में,
हर नुक्कड़ हर गली को ध्यान से देखता हुआ।
हाथ में थैला और दिल में कुछ अजीब सी अनछुई और अल्हड सी यादें।

हर मन्दिर, हर दरगाह मुडमुड कर देखता हुआ,
याद करता जा रहा था, हर वो पल बिताया हुआ।

कहीं से कोई आवाज़ देकर रोक लेता तो अच्छा लगता,
कभी में किस्सी को हाथ दिखाकर बुला लेता तो अच्छा लगता।

यहाँ सब मुझे जानते है, मेरी आवाज़, मेरी हस्ती को पहचानते हैं,
मिलते है तो दिल को छु लेते हुए प्यार से पूछते है की कैसा है और कहा है।

उनसे बतियाते हुए मैं कभी नही थकता, उन अपनों की चिंता करना बिल्कुल नही अखरता, मिलता जाता हु सबसे हंसकर, सोचता हु की कही और कोई मेरी इतना चिंता क्यूँ नही करता।

जिस दफ्तर मैं अपना सारा दिन बिताता हु, वह कोई मुझे नही जानता,
इतने सालो के बाद भी, बिना आई-कार्ड के नही पहचानता।

सुबह लेट पहुंचू ऑफिस तो कोई खैरियत नही पूछता।
पूछते है तो सिर्फ़ ये की लेट क्यों हुआ और कल का काम अब तक क्यों नही हुआ।

रात मैं घर लौटते वक्त रास्ते मैं कोई मन्दिर क्यों नही पड़ता,
मेरे बचपन के शहर की तरह, यहाँ सुबह सुबह कोई नमाज़ क्यों नही पढता।

इस शहर में हर बरस मेला क्यों नही लगता,
और छोटी सी बात पर आपस में कोई क्यों नही झगड़ता।

इस अनजान शहर में अपनेपन के अलावा कोई कमी नही है,
पर मेरे पुराने शहर की लाख कमियों में भी एक अनपढ़ सी खुशी क्यों है।

कल ये नया रंगीन शहर, रोजाना की तरह अपने बेरंग दिन को झेलेगा,
और वहा मेरे बचपन का शहर रंगों से खुल कर खेलेगा।

.......Siddhartha

5 comments:

fursat said...

Bahut achee kavite likhi hain. Yaad aa gayee apne bachpann aur bachpann ke galiyon ki. Aap Gwalior se ho aur hum bhi aapke paas ke shehar Agra ke rehne waale hain :)

sid said...

@Ricky- Good to know that you are from City of Taj, Agra ki galiyan (lanes, not the abuses) are famous for many a things...

Anindya Sharma said...

This brings tears in to my eyes!

sid bhai bahut hi achchha likha hai!

Dr. Rajrani Sharma said...

sidhharth !beta bahut hi rula diya tune to ye nostelgia hi ek vardan rah gaya hai hamare dur base bachhon ki duniya main --beta is bhavukta ko sambhal kar rakhna ---aur ek bat ki ghar swee dur hi to ghar ki kimat pata lagti hai par badho tum log aage aur aage aur apni man ki tanhaiyon main apne ghar aur shahar ko zinda banaye rakho ---itna naam kamao ki ek din tumse shahar ko pahcghhan mile ---beta wo insan bada hi bhagyashali hota hai jiski aatmako dukh maanz deta hai ---is abhav ke bhav ko niratar badhte rahna--sada khush raho ----tumhari aunti (anindya aur amulya ki maan Raj --Gwalior

sid said...

@Anindya & Auntyji,

Aunty, after reading your comments, I felt really touched.

Gwalior ko hum log kabhi nahi bhool sakte aur door reh kar parents ki aur jyada yaad aati hai. But, kabhi majboori aur kabhi apni niyati jaan kar, humsha khush rehte hai hum sabhi.

Aap bade logo ke aashirwaad aur pyaar se hi to hume sab kuch milta hai.