This one is coming a bit late but a masterpiece written by Nida Fazli touches the emotional chords of my heart. This one is for you maa:
बेसन की सोंधी रोटी पर,
खट्टी चटनी जैसी माँ।
याद आती है चौका बासन,
चिमटा फुकनी जैसी माँ।
बांस की खुर्री खाट के ऊपर,
हर आहट पर कान धरे।
आधी सोयी आधी जागी,
थकी दुपहरी जैसी माँ।
चिडियों के चहकार में गूंजे,
राधा-मोहन अली अली।
मुर्गे की आवाज़ से खुलती,
घर की कुण्डी जैसी माँ।
बीवी, बेटी, बहिन, पडोसन,
थोडी थोडी सी सब में।
दिन भर एक रस्सी के उप्पर,
चलती नतनी जैसी माँ।
बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहा गई।
फटे पुराने इक एल्बम में,
चंचल लड़की जैसी माँ।
Thursday, April 09, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment