Sunday, May 31, 2009
देश प्रेम
जय हिंद और वंदे मातरम का नारा उसने हुंकारा।
भरी सभा में राष्ट्र गान का जब सबको आभास हुआ,
पढ़े लिखो की इस नगरी में , लोगो का अपमान हुआ।
उस सभा के ज्ञाता ने फ़िर इस बालक को समझाया,
और उसके बाल मन से बापू का जादू झदवया।
इन नाहक की बातो से किस का मतलब भरता है,
इस सिस्टम का हर पहिया बस पैसे से ही चलता है।
तुम भी बहती गंगा में अपना गमछा साफ़ करो,
कुछ और न बन सके तुमसे तो भारत का निर्माण करो।
बालक बोला अध्यापक से, तुम तो कुछ उल्टा पाठ पढ़ाआते हो,
अब से शिक्षा लूँगा उनसे, जो काम की बात बताते हो।
भारत माता की रक्षा पर तुमने व्यर्थ ही ज्ञान दिया,
और अपनी बातो से मेरा वक्त बरबाद किया।
बढ़ना है मुझको आगे, अपने सपने पूरे करने है,
रास्ता चाहे जो भी हो, मुझे हासिल लक्ष्य सभी करने है।
इस तरह बालक की दुविधा का अंत हुआ,
शामिल हुआ वो भीड़ में और नैतिकता का ध्वंस हुआ।
... सिद्धार्थ
One Crazy Night
Thursday, May 28, 2009
भौतिक विक्षिप्तता
नही किंचित ही विचलित वो, कहे ख़ुद को फ़िर भी सभ्य वो।
जंगल के असभ्य भूके शेर, कभी नही करते अपनों से बैर,
वो भी इतना अन्तर जानते है, अपनों की कीमत पहचानते है।
कुछ लोग नित नए खेल रचते है, माँ-बाप को ही वो ठगते है,
विश्वास की क्या बात करे, जब लेकर खंजर वो चलते है।
वो भी इंसानों जैसे दीखते है, हमारे अपनों में ही मिलते है।
मिलते है और खो जाते है, वो एकदम आम हो जाते है।
फ़िर वक्त बदलते आते है और कोहराम मचाते है,
कोई बच्चो बुधो का मान नही, कोई औरत का सम्मान नही,
उन्हें किसी मज़हब का ज्ञान नही, किसी नैतिकता का धयन नही।
ऐसे ही कुछ दानव , हम सबके भीतर पलते है,
दिन में वो सो जाते है और रात निकलते चलते है।
.....सिद्धार्थ
Tuesday, May 26, 2009
नेताजी
भारत के विकास की आस हमे दिलाते है।
भोली जनता, समझे सब पर बेबस ही रह जाती है,
अपने मत का प्रयोग कर, ताकत पर इठलाती है।
जनता को नही चाह उन सतरंगी सपनो की, जो नेता उसे दिखलाते है,
चिंता है उसको भूखे बच्चो की जो रोटी को चिलाते है।
किसान कहे बीजली मुझसे नज़रें क्यों चुराती है,
और मेरे सूखी किस्मत में, आने से डर जाती है।
इस धरा का यह बेटा, अपनी मेंहनत से सोना उगाता है,
और कर्जे के बोझ से मारा, भूखा ही सो जाता है।
नेता बोले सभी योजनाये अब हमारे टेबल पर है,
और देश की इकोनोमी एकदम टॉप क्लास लेवल पर है,
खुश होकर, में चिलाया, नेताजी तो भगवान् है,
तेरे मेरे, हम सब की नैया के खेवनहार है।
सपना टूटा, टूट गया दिल, जब हमने यथार्त में ख़ुद को पाया,
मेरी इक शंका को, नेता के चमचो ने बड़े प्यार से बहलाया।
चमचे बोले , तुम व्यर्थ में क्यों चिलाते हो,
नेता जी तो बाहुबली है, तुम क्यों अपना खून जलाते हो।
हमने मौके को भापते हुए, अपना मुह बंद किया,
और पड़े जो दो चार जूते, तो ख़ुद को समझो धन्य किया।
इस नेता की खातिरदारी से हमने ये महसूस किया,
की चलता है तो चलने दो कहने का समय अभी चला गया।
इस रोष को सींच कर, वृक्ष हम बना देंगे, दिवार पर लिखी लिखाई को धता हम बता देंगे,
बढेगा ये देश, इसमे कोई दो राय नही, नेताजी को पॉलिटिक्स का मतलब हम सिखा देंगे।
.... सिद्धार्थ
Wednesday, May 20, 2009
परीक्षा परिणाम
तो ऐसे ही समय में हमने हाई स्कूल की परीक्षा पास करने की चेष्टा की। तब परीक्षा परिणाम हमारे शहर के एक शासकीय कार्यालय में घोषित हुआ करता था और इन्टरनेट नामक क्रान्ति अभी तक हमारे देश और प्रदेश को छूकर नही गुजरी थी।
जो लिस्ट उत्तीर्ण परीक्षार्थियों का नाम लिए होती थी, वो चंद खुशनसीब आंखों के अलावा कोई और नही देख पाता था और उसी लिस्ट की प्रतिलीपिया कुछ बिचोलियों के पास उपलब्ध रहती थी। प्रति परिणाम ५ रुपये। एक जगह हमे प्रथम श्रेणी में बताया गया तो दूसरी जगह हमारा रोल नम्बर नदारद बताया गया। हमारे पूरे कुनबे के हितेषी लोग बड़ी आशा लिए सभी जगह हमारा रोल नम्बर ढूंढ रहे थे। काफी दौड़ धुप के बाद जब सब आश्वस्त हो गए की हम वाकई उत्तीर्ण हो चुके है, तब सभी रिश्तेदारों ने हमे खुश होने का अवसर प्रदान किया।
आज जब कंप्यूटर पर एक क्लिक करके, परीक्षार्थी के भविष्य का फ़ैसला हो जाता है, हमे अपने परिणाम को जानने के लिए की गई जद्दो जहद याद आ जाती है।
Monday, May 18, 2009
शादी का प्रमाण पत्र
शादी तो सभी करते है, कुछ नही करते तो उनके अपने कारण होते होंगे। हमने तो की और बहुत धूम धाम से की। बैंड बाजा, खूप सारे बाराती और हर वो रस्म जो एक महाराष्ट्रियन शादी में होती है और ना सिर्फ़ महाराष्ट्रियन बाकि कई उत्तर भारतीय रस्मे भी शादी में सम्मिलित कर ली, सोचा क्यों कोई कसर रखी जाए भगवान् को खुश करने में।
अब अमूमन लोग शादी के पश्चात् घुमने जाते है, कुछ सभ्य एवं शर्मीले लोग इसे सिर्फ़ घूमना फिरना कहते है, कुछ पाश्चात्य तौर तरीकों में विश्वास रखने वाले धड़ल्ले से पूछते है की हनीमून कहाँ जहा रहे हो। तो साहब, हमे हनीमून से ज़रूरी एक काम की चिंता सता रही थी और वो थी शादी का प्रमाण पत्र बनवाने की। हमने जब पूछा की इसकी क्या अव्शयाकता है तो लोगो ने हमारी अज्ञानता पर अफ़सोस जताते हुए समझाया की आपकी शादी हुई है, ये हमे पता है, आपको पता है और उस पंडित को पता है, सरकार को क्या पता। हमे बात में दम दिखा तो हमने भी अपना पूरा दाम (जी हाँ दाम) इस प्रमाण पत्र को हासिल करने में लगा दिया।
सरकारी दफ्तर में घुसते ही, हमने लपक के बाबु से अंग्रेजी में पूछा , फ्रॉम वेयर आइ कैन गेट दा ऍप्लिकेशन फॉर्म? बाबु ने हमे अचम्भे से देखा और बिना कुछ बोले एक लिस्ट पकड़ा दी। लिस्ट में तमाम तरह के कागजात मांगे गए थे। certificate चाहिए तो ये सब लेके आइये। हम लपक के गए और पलक झपकते ही नही आ पाए क्युकी हमे वो सब कागज़ बनवाने में ४ घंटे लग गए। जब हम विजयी मुद्रा में बाबु के सामने लौटे और उसे सामने सभी कागज़ प्रस्तुत किए तो उसने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए एक बेंच की और इशारा किया और कहा बैठो अभी।
हमे लगा की बाबु हमारी पसीने से तर बतर काया को देख कर कुछ शीतल पेय पिलाना चाहते है। हमने सोचा की हम कहे की अब क्यों बैठे, अब तो बस हम certificate लेंगे और घर जायेंगे, लेकिन उनकी आँखों के इशारों के आगे हम और हमारी धर्मपत्नी कुछ न कह सके और चुपचाप बेंच पर बैठ गए।
जब आधे घंटे तक बाबु एक रजिस्टर में बिना किस्सी हाव भाव के घूरते रहे तो हमने सोचा उन्हें अपनी उपस्तिथि फ़िर याद दिलाई जाए। इस बार उन्होंने हमसे हस्ताक्षर मांग लिए और हमने सोचा की अब तो काम हुआ ही समझो। ख़ुद को भाग्यशाली समझते हुए हमने अपने बेहतरीन हस्ताक्षर कर दिए , हमारी धर्मपत्नी भी मुस्कुराते हुए हस्ताक्षर किए जा रही थी।
जैसे ही सारी ओप्चारिक्ताये पूरी हो गई, हमे दो टूक जवाब मिला की हफ्ते भर बाद आना। हमने कुछ होल हुज्जत करने की सोच उत्पन्न की लेकिन तभी एक और विवाहित जोड़ा दफ्तर में घुसा और बाबु से बोला की अब तो एक महिना हो गया , अब तो हमे certificate दे दीजिये। बाबु ने कहा की बड़े साहब शहर से बाहर गए है, हफ्ते भर बाद आइयेगा। अब हम माजरा समझ रहे थे और मन ही मन अपनी भोली धारणाओं पर हस रहे थे। हमने जेब से ५०० रुपये के दो नोट निकाले और बाबु को धीरे से टिका दिए। बाबु ने पहले तो हमे एक अपराधी की तरह संबोधित किया और अपने रहस्यमयी रजिस्टर में आँखें गदा दी, हम सहम गए, सरकारी तंत्र में इस जादुई मन्त्र का प्रयोग असफल होते देख, हमारी रही सही उम्मीद भी धूमिल होती जा रही थी की तभी हमने वो अजूबा देखा जिसकी हम कल्पना मात्र से चहक उठे।
उस असामाजिक चेहरे पर अचानक से मनुष्यता झलकने लगी और एक प्यारी सी मुस्कराहट से सरकारी दफ्तर का वो बाबु , साक्षात् परमात्मा की शक्ति लिए हुए प्रतीत हुआ।
उसने हमे और आस्तिक बन्ने की प्रेरणा देते हुए, दक्षिणा में बढोतरी की मांग की और जब हमने वक्त की अहमियत को समझाते हुए अपने आदर्शो और बटुए के साथ बेवफाई की , तो बाबु ने झट से मोहर लगा दी और फाइल बड़े साहब के लिए बढ़ा दी। उसने हमे आश्वस्त भी किया की कल आइये और अपना certificate ले जाइए। अगले दिन जब हम सर्तिफिकाते लेने पहुचे तो वो मुस्कान तो गायब थी लेकिन सामने एक और विवाहित दंपत्ति अपने प्रमाण पत्र को पाने की असफल कोशिश करते नज़र आई। खैर, इस बेईमानी से भरे कार्यालय ने हमारा काम बड़ी इमानदारी से करवाया और हमे मुद्रा की माया से अवगत करवाया।
हमारे समाज की ऐसी कई घटनाएं हमे ये सोचने पर मजबूर करती है की हम बचपन से जिस नैतिकता का पाठ पढ़ते और पढाते है , अपने इन्ही आदर्शो को हम बिना हिचकिचाए हुए अपने स्वार्थ के हवन में स्वाहा कर देते है।
कभी वक्त, कभी मजबूरी और कभी बिना किसी कारण के हम इस बुराई का हिस्सा बन जाते है।