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Monday, May 18, 2009

शादी का प्रमाण पत्र

शादी तो सभी करते है, कुछ नही करते तो उनके अपने कारण होते होंगे। हमने तो की और बहुत धूम धाम से की। बैंड बाजा, खूप सारे बाराती और हर वो रस्म जो एक महाराष्ट्रियन शादी में होती है और ना सिर्फ़ महाराष्ट्रियन बाकि कई उत्तर भारतीय रस्मे भी शादी में सम्मिलित कर ली, सोचा क्यों कोई कसर रखी जाए भगवान् को खुश करने में।

अब अमूमन लोग शादी के पश्चात् घुमने जाते है, कुछ सभ्य एवं शर्मीले लोग इसे सिर्फ़ घूमना फिरना कहते है, कुछ पाश्चात्य तौर तरीकों में विश्वास रखने वाले धड़ल्ले से पूछते है की हनीमून कहाँ जहा रहे हो। तो साहब, हमे हनीमून से ज़रूरी एक काम की चिंता सता रही थी और वो थी शादी का प्रमाण पत्र बनवाने की। हमने जब पूछा की इसकी क्या अव्शयाकता है तो लोगो ने हमारी अज्ञानता पर अफ़सोस जताते हुए समझाया की आपकी शादी हुई है, ये हमे पता है, आपको पता है और उस पंडित को पता है, सरकार को क्या पता। हमे बात में दम दिखा तो हमने भी अपना पूरा दाम (जी हाँ दाम) इस प्रमाण पत्र को हासिल करने में लगा दिया।

सरकारी दफ्तर में घुसते ही, हमने लपक के बाबु से अंग्रेजी में पूछा , फ्रॉम वेयर आइ कैन गेट दा ऍप्लिकेशन फॉर्म? बाबु ने हमे अचम्भे से देखा और बिना कुछ बोले एक लिस्ट पकड़ा दी। लिस्ट में तमाम तरह के कागजात मांगे गए थे। certificate चाहिए तो ये सब लेके आइये। हम लपक के गए और पलक झपकते ही नही आ पाए क्युकी हमे वो सब कागज़ बनवाने में ४ घंटे लग गए। जब हम विजयी मुद्रा में बाबु के सामने लौटे और उसे सामने सभी कागज़ प्रस्तुत किए तो उसने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए एक बेंच की और इशारा किया और कहा बैठो अभी।

हमे लगा की बाबु हमारी पसीने से तर बतर काया को देख कर कुछ शीतल पेय पिलाना चाहते है। हमने सोचा की हम कहे की अब क्यों बैठे, अब तो बस हम certificate लेंगे और घर जायेंगे, लेकिन उनकी आँखों के इशारों के आगे हम और हमारी धर्मपत्नी कुछ न कह सके और चुपचाप बेंच पर बैठ गए।

जब आधे घंटे तक बाबु एक रजिस्टर में बिना किस्सी हाव भाव के घूरते रहे तो हमने सोचा उन्हें अपनी उपस्तिथि फ़िर याद दिलाई जाए। इस बार उन्होंने हमसे हस्ताक्षर मांग लिए और हमने सोचा की अब तो काम हुआ ही समझो। ख़ुद को भाग्यशाली समझते हुए हमने अपने बेहतरीन हस्ताक्षर कर दिए , हमारी धर्मपत्नी भी मुस्कुराते हुए हस्ताक्षर किए जा रही थी।

जैसे ही सारी ओप्चारिक्ताये पूरी हो गई, हमे दो टूक जवाब मिला की हफ्ते भर बाद आना। हमने कुछ होल हुज्जत करने की सोच उत्पन्न की लेकिन तभी एक और विवाहित जोड़ा दफ्तर में घुसा और बाबु से बोला की अब तो एक महिना हो गया , अब तो हमे certificate दे दीजिये। बाबु ने कहा की बड़े साहब शहर से बाहर गए है, हफ्ते भर बाद आइयेगा। अब हम माजरा समझ रहे थे और मन ही मन अपनी भोली धारणाओं पर हस रहे थे। हमने जेब से ५०० रुपये के दो नोट निकाले और बाबु को धीरे से टिका दिए। बाबु ने पहले तो हमे एक अपराधी की तरह संबोधित किया और अपने रहस्यमयी रजिस्टर में आँखें गदा दी, हम सहम गए, सरकारी तंत्र में इस जादुई मन्त्र का प्रयोग असफल होते देख, हमारी रही सही उम्मीद भी धूमिल होती जा रही थी की तभी हमने वो अजूबा देखा जिसकी हम कल्पना मात्र से चहक उठे।

उस असामाजिक चेहरे पर अचानक से मनुष्यता झलकने लगी और एक प्यारी सी मुस्कराहट से सरकारी दफ्तर का वो बाबु , साक्षात् परमात्मा की शक्ति लिए हुए प्रतीत हुआ।

उसने हमे और आस्तिक बन्ने की प्रेरणा देते हुए, दक्षिणा में बढोतरी की मांग की और जब हमने वक्त की अहमियत को समझाते हुए अपने आदर्शो और बटुए के साथ बेवफाई की , तो बाबु ने झट से मोहर लगा दी और फाइल बड़े साहब के लिए बढ़ा दी। उसने हमे आश्वस्त भी किया की कल आइये और अपना certificate ले जाइए। अगले दिन जब हम सर्तिफिकाते लेने पहुचे तो वो मुस्कान तो गायब थी लेकिन सामने एक और विवाहित दंपत्ति अपने प्रमाण पत्र को पाने की असफल कोशिश करते नज़र आई। खैर, इस बेईमानी से भरे कार्यालय ने हमारा काम बड़ी इमानदारी से करवाया और हमे मुद्रा की माया से अवगत करवाया।

हमारे समाज की ऐसी कई घटनाएं हमे ये सोचने पर मजबूर करती है की हम बचपन से जिस नैतिकता का पाठ पढ़ते और पढाते है , अपने इन्ही आदर्शो को हम बिना हिचकिचाए हुए अपने स्वार्थ के हवन में स्वाहा कर देते है।

कभी वक्त, कभी मजबूरी और कभी बिना किसी कारण के हम इस बुराई का हिस्सा बन जाते है।

3 comments:

neer said...

bahut aacha likha hai

Genie said...

the prob is people don't have time....its not that they like paying bribes to get their work done.....no one wants to get in the mud and clean it a bit....every one just jumps over with the power of money !

sid said...

@Genie,

Yes, Excuses may differ but path followed is same, we all end up paying money even when we know its wrong.